1947-48 भारत-पाकिस्तान कश्मीर युद्ध की पूरी कहानी: पहला संघर्ष और अधूरी लड़ाई
जानिए भारत-पाकिस्तान संघर्ष की शुरुआत कैसे हुई, कश्मीर इस विवाद का केंद्र क्यों बना, और कैसे यह पहला युद्ध आज भी दक्षिण एशिया को प्रभावित करता है।
प्रस्तावना: दो देशों का जन्म – और एक संघर्ष की शुरुआत
अगस्त 1947 – भारत ने सदियों की ब्रिटिश गुलामी के बाद आज़ादी प्राप्त की। लेकिन यह स्वतंत्रता एक कीमत के साथ आई – भारत का बंटवारा और पाकिस्तान नामक एक नए देश का निर्माण।
जब दोनों देश विभाजन की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहे थे, तभी एक नई जंग की जमीन बनी – जम्मू और कश्मीर की रियासत।
यहीं पर भारत और पाकिस्तान ने आज़ादी के सिर्फ तीन महीने बाद अपना पहला युद्ध लड़ा। यह केवल सैन्य टकराव नहीं था, बल्कि दक्षिण एशियाई भू-राजनीति का एक निर्णायक मोड़ था – एक ऐसा विवाद जिसकी जड़ें आज भी गहरी हैं।
कश्मीर 1947 में इतना महत्वपूर्ण क्यों था?
जम्मू और कश्मीर एक रियासत थी, जिसके शासक महाराजा हरि सिंह थे – एक हिंदू राजा, लेकिन बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या वाले राज्य में।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार, रियासतों के पास तीन विकल्प थे: भारत में विलय, पाकिस्तान में विलय, या स्वतंत्र रहना।
महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे – लेकिन पाकिस्तान की योजना कुछ और थी।
पाकिस्तान की चाल: जनजातीय आक्रमण (ऑपरेशन गुलमर्ग)
22 अक्टूबर 1947 को, पाकिस्तान-समर्थित जनजातीय लड़ाके, उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत से कश्मीर में घुस आए। उनका उद्देश्य था – बलपूर्वक कश्मीर पर कब्जा कर लेना, यह मानते हुए कि मुस्लिम बहुल जनता उनका समर्थन करेगी।
लेकिन इसके बजाय हुआ – लूटपाट, हत्या और महिलाओं पर अत्याचार। खासतौर पर बारामूला जैसे कस्बों में हालात भयावह हो गए। स्थिति बेकाबू हो गई और महाराजा के पास भारत से सहायता मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
विलय पत्र (Instrument of Accession): कश्मीर का भारत से कानूनी जुड़ाव
26 अक्टूबर 1947 को, महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिससे जम्मू-कश्मीर भारत का वैध हिस्सा बन गया।
अगले ही दिन, भारत ने फौज भेजी। श्रीनगर में वायुसेना के जरिए सैनिकों को भेजा गया, जिनका नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा जैसे बहादुर सैन्य नेताओं ने किया।
भारतीय सेनाओं ने आक्रमणकारियों को पीछे धकेलते हुए बारामूला और उरी जैसे क्षेत्रों को दोबारा अपने नियंत्रण में लिया।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और युद्धविराम
1948 के अंत तक भारतीय सेना मजबूत स्थिति में थी।
भारत ने मामला संयुक्त राष्ट्र (UN) में उठाया, उम्मीद थी कि शांतिपूर्ण हल निकलेगा।
UN ने मध्यस्थता करते हुए युद्धविराम लागू कराया, जो 1 जनवरी 1949 को प्रभावी हुआ।
इस युद्धविराम रेखा को बाद में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) कहा गया – जिससे कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया: एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में (PoK) और बाकी भारत के पास।
ऐतिहासिक प्रभाव: क्यों यह युद्ध आज भी मायने रखता है
यह युद्ध कश्मीर विवाद की नींव था, जिसने आगे चलकर कई युद्धों और आज तक चलने वाले तनाव को जन्म दिया।
यह विदेशी घुसपैठ, संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी और कश्मीर के विभाजन जैसी मिसालें स्थापित कर गया – जो आज भी समाधान की प्रतीक्षा में हैं।
लेखक की विशेषज्ञता और उपयोग किए गए स्रोत :
यह लेख गहन शोध के आधार पर लिखा गया है, जिनमें शामिल हैं:
- भारत सरकार द्वारा जारी श्वेत पत्र (White Papers) – 1948–49
- संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का अभिलेख (UN Resolutions Archive)
- इतिहासकार रामचंद्र गुहा और स्टैनली वोल्पर्ट की प्रामाणिक पुस्तकें
- भारतीय सेना और रक्षा जर्नल्स की पुरानी रिपोर्ट्स
ऐसा युद्ध जो कभी खत्म नहीं हुआ
1947–48 का भारत-पाक युद्ध केवल ज़मीन के लिए नहीं था – यह विचारधाराओं, महत्वाकांक्षाओं और पहचान का संघर्ष था। कश्मीर वो ज़ख्म बन गया जिसे दोनों देश अब तक ढो रहे हैं।
1949 में बंदूकें तो शांत हो गईं, लेकिन संघर्ष आज भी ज़िंदा है – राजनीति में, सीमाओं पर और आम लोगों की ज़िंदगियों में।